
हिंदुस्तान के इतिहास में यूँ तो कई विदेशी आक्रांताओ ने हमला कर यहाँ के राजाओं को अपनी अधीनता मानने पर मजबूर किया पर चित्तौड़ का सिसोदिया राजवंश सम्भवता अकेला ऐसा उदाहरण है जिसने कभी भी किसी की अधीनता स्वीकार नही की। सिसोदिया राजवंश की अनेक महान हस्तियों को आदर पूर्वक याद किया जाता है जैसे कि राणा रत्न सिह जिन्होंने अलाउद्दीन खिलजी से लड़ते हुए प्राण त्याग दिए पर जीते जी हार नही मानी। रत्न सिह की पत्नी रानी पद्मिनी (पद्मावती) जिन्होंने रत्न सिह की वीर गति के बाद अलाउद्दीन खिलजी की बनने के बजाय जौहर कर स्वयं को जिंदा जला लिया। इसी राजवंश में राणा सांगा हुए जिन्होंने बाबर को कड़ी टक्कर दी। मीराबाई इन्ही राणा सांगा की पुत्रवधु थी जिन्होंने अपना जीवन कृष्ण भक्ति में संतो की तरह व्यतीत किया।
राणा सांगा के छोटे पुत्र उदय सिह ने वर्तमान उदयपुर की स्थापना की। राणा उदयसिह, राणा प्रताप के पिता थे।२८ फरवरी, सन् १५७२ को महाराणा उदयसिह का देहांत हुआ और महाराणा प्रताप सभी सामंतों की सम्मति से सिंहासन पर बैठे। सन् १५७६ में हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप, अकबर की विशाल सेना से परास्त हुए, किंतु मुगल सेना भी इतनी क्षत विक्षत हुई कि उसे आगे बढ़ने की हिम्मत न हुई। स्वतंत्रता को धन और ऐश्वर्य से कहीं अधिक समझने वाले महाराणा ने घोर संकट सहकर भी अकबर के विरुद्ध युद्ध जारी रखा और सन् १५८६ तक मांडलगढ़ और चित्तौड़ को छोड़कर समस्त मेवाड़ पर फिर अधिकार कर लिया। सन् 29 जनवरी1597 को महाराणा का स्वर्गवास हुआ। किन्तु राणा प्रताप व सिसोदिया राजवंश अपनी वीर गाथाओं के साथ इतिहास में साहित्य के माध्यम से भी अमर है.ऐसी ही चंद रचनाओं के उदाहरण प्रस्तुत है–
1-वह पराधीनता की रजनी में गौरव का उजियाला था
जो चढ़ा मान सिंह के सिर पर राणा प्रताप का भाला था
2-रण बीच चौकड़ी भर – भर कर,चेतक बन गया निराला था।
राणा प्रताप के घोड़े से,पड़ गया हवा का पाला था।
3-राणा प्रताप इस भारत भूमि के,मुक्ति का मंत्र गायक है.
राणा प्रताप आजादी का,अपराजित काल विधायक है
4-रजपूतन की नाक तूँ, राणा प्रबल प्रताप।
है तेरी ही मूँछ की राजस्थान में छाप॥
5-यहाँ तक की भगत सिह व चंद्रशेखार आज़ाद के प्रेरणा स्रोत पंडित रामप्रसाद बिस्मिल ने अपनी मशहूर रचना मुखम्मस में लिखा है-
एक परवाने का बहता है लहू नस-नस में,
अब तो खा बैठे हैं चित्तौड़ के गढ़ की कसमें ,
सरफ़रोशी की अदा होती हैं यूँ ही रस्में,
भाई खंजर से गले मिलते हैं सब आपस में ,
बहने तैयार चिताओं से लिपट जाने को !
इस तरह से हम पाते है कि राणा प्रताप सदा के लिए साहित्य के माध्यम से भी अमर रहेगे.आज 29 जनवरी उनकी पुन्यतिथि पे राणा प्रताप को हमारी तरफ से श्रद्धा सुमन।
प्रस्तुति-विपुल त्रिपाठी
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